रामलीला मैदान मंच पर श्रीराम कथा के चौथे दिन राम जन्मोत्सव का हुआ आयोजन
श्रीकृष्ण प्रिया दीदी ने रामकथा सुनाई
रामलीला मैदान के मंच पर श्रीराम कथा के चौथे दिन राम जन्मोत्सव का हुआ आयोजन
संवाददाता शैलेन्द्र कुमार
जसवंतनगर/इटावा। भगवान श्रीराम ने अपने उत्कृष्ट आचरण से अखिल विश्व को मानवता, प्रेम तथा पारिवारिक एवं सामाजिक मर्यादा का संदेश दिया। सत्य से विचलित मानवता को युग-युगांतर तक सही मार्ग दिखाता रहेगा रामचरित मानस। रामलीला मैदान परिसर में चल रहे नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के चौथे दिन राम जन्मोत्सव मनाया गया। इस मौके पर मौजूद श्रद्धालु भगवान श्रीराम सहित चारों भाईयों के जन्म कथा का श्रवण कर झूम उठे। वृंदावन से पधारी कृष्ण प्रिया पूजा दीदी ने राम जन्म प्रसंग की ऐसी व्याख्या की कि श्रोता भावविभोर हो उठे।
कथा वाचन के दौरान पूजा दीदी ने कहा कि तीन कल्प में तीन बार विष्णु का अवतार हुआ है और चौथे कल्प में साक्षात भगवान श्रीराम जी ने
जब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि नील वर्ण, चुंबकीय आकर्षण वाले, अत्यन्त तेजोमय, परम कान्तिवान तथा अत्यंत सुंदर था। माता कौशल्या के गर्भ से अवतरित हुए है। श्रीराम जन्म प्रसंग से पूर्व प्रिया ने सती प्रसंग की विस्तार से व्याख्या की। उन्होंने कहा कि एक बार माता सती भगवान शंकर बिन बताए ही माता सीता का रूप धारण कर भगवान राम की परीक्षा लेने चली गई। लेकिन भगवान श्रीराम ने उन्हें पहचान कर पूछ लिया हे माता आप अकेले कहां घूम रही है। जिसे सुन माता सती संकोच में पड़ गई। लेकिन भगवान शंकर ने ध्यान लगाकर सती द्वारा भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने की बातें जान ली। जिसके बाद भगवान शंकर इस सोच में पड़ गए कि सती माता सीता का रूप धारण कर भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने चली गई। अब ऐसी स्थिति में मैं सती से प्रेम कैसे कर सकता हूँ। प्रिया जी ने आगे कहा कि माता सती के पिता राजा दक्ष के यहां यज्ञ हो रहा था। जिसमें शामिल होने के लिए माता सती ने भगवान से अपनी इच्छा जाहिर की थी। जिस भगवान शंकर ने माता सती से कहा कि तुम्हारे पिता ने यज्ञ में आने के लिए हमलोगों को आमंत्रित नहीं किया है। हालांकि माता-पिता, गुरु एवं मित्र के घर जाने के लिए आमंत्रण की जरूरत नहीं होती है। जहां मान नहीं हो वहां बिन बुलाए जाना भी नहीं चाहिए।
आव नहीं आदर नहीं नेंनन नहीं सनेह, तुलसी वहाँ न जाइए चाहे कंचन वरसे नेह।।
आवत ही आदर करे चलत ही देहे रोय,तुलसी ऐसे मित्र के चाहे भूखे जाय सोय।।
उन्होंने कहा कि भगवान शंकर की बात की अवहेलना कर माता सती अपने पिता राजा दक्ष के घर पहुंच गई। लेकिन यज्ञस्थल के निकट भगवान शंकर का स्थान नहीं देख क्रोध में आकर यज्ञ विध्वंस करने की नियत यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग कर दी थी। जिसके बाद माता सती ने घोर तपस्या कर राजा हिमाचल एवं रानी मैना के घर पार्वती के रूप में जन्म ली। फिर माता पार्वती से भगवान शंकर का विवाह हुआ और दोनों कैलाश पर्वत जाकर रहने लगें। संगीतमय श्रीराम कथा सुनने के लिए हर दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा हो रही है। श्रीराम कथा की अमृत वर्षा में श्रद्धालु गोता लगा रहे है। प्रिया जी के मुखारविंद से श्रीराम कथा सुन श्रद्धालु भाव विभोर हुए जा रहे है। दोपहर एक बजे से लेकर शाम के पाँच बजे तक श्रीराम कथा सुनने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
फोटो:-राम जन्म की कथा सुनाती हुईं श्रीकृष्ण प्रिया पूजा दीदी।